रविवार, 16 अक्तूबर 2022

कोरोना ने अमीर बढ़ाये

 

कोरोना में हर 30 घंटे में बना एक नया अरबपति, लाखों लोग 33 घंटे में हुए गरीब; पढ़ें ऑक्सफैम की ये रिपोर्ट

कोरोना में करोड़ों लोगों की नौकरी चली गई और लाखों लोगों को अत्यधिक गरीबी का सामना करना पड़ा। ऑक्सफैम के नए शोध के मुताबिक कोरोना के दौरान हर 30 घंटे में एक नया अरबपति बना है। वहीं हर 33 घंटे में लगभग 10 लाख लोग गरीब हुए हैं।

नई दिल्ली, पीटीआइ। विश्व आर्थिक मंच की वार्षिक बैठक 2022 के लिए दुनिया भर के अमीर और पावरफुल लोग दावोस में इकट्ठा हो रहे हैं। ऑक्सफैम इंटरनेशनल ने सोमवार को कहा कि कोविड-19 महामारी के दौरान हर 30 घंटे में एक नया अरबपति उभरकर सामने आया है, जबकि हर 33 घंटे में लगभग 10 लाख लोग गरीबी रेखा से नीचे चले गए।

दावोस में 'प्रोफिटिंग फ्रॉम पेन' टाइटल से एक रिपोर्ट जारी करते हुए अधिकार समूह ने आगे कहा कि आवश्यक वस्तुओं की लागत पिछले दशकों की तुलना में तेजी से बढ़ी हैं। खाद्य और ऊर्जा क्षेत्रों में अरबपति हर दो दिन में एक अरब अमरीकी डॉलर तक खुद को बढ़ा रहे हैं। डब्ल्यूईएफ (वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम) खुद को पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के लिए एक इंटरनेशनल ऑर्गनाइजेशन के रूप में प्रदर्शित करता है और वह दो साल के बाद दावोस में अपनी वार्षिक बैठक की मेजबानी कर रहा है।

दावोस पहुंच रहे दुनिया भर के अरबपति

ऑक्सफैम इंटरनेशनल के कार्यकारी निदेशक गैब्रिएला बुचर ने कहा कि कोविड के समय में बिजनेस में हुए अविश्वसनीय उछाल का जश्न मनाने के लिए अरबपति दावोस पहुंच रहे हैं। महामारी के कारण खाद्य और ऊर्जा की कीमतों में भारी उछाल हुआ है, जो कुछ अमीर लोगों के लिए वरदान साबित हुआ है। हालांकि, कोविड के कारण लाखों लोग गरीबी का सामना कर रहे हैं। लाखों लोग ऐसे हैं, जो इस महंगाई को झेलते हुए सिर्फ जीवित रहने का प्रयास कर रहे हैं।

हर 30 घंटे में बन रहा एक नया अरबपति

रिपोर्ट से पता चला है कि महामारी के दौरान हर 573 लोग नए अरबपति बने हैं। मतलब कि हर 30 घंटे में एक नया अरबपति बना है। वहीं, ऑक्सफैम इंटरनेशनल ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि इस साल हर 33 घंटे में एक मिलियन (10 लाख) लोगों की दर से 263 मिलियन और लोग गरीबी रेखा के नीचे चले जाएंगे।

कोविड में अरबपतियों की संपत्ति में बढ़ोतरी

कोविड-19 के पहले 24 महीनों में अरबपतियों की संपत्ति में पिछले 23 वर्षों की तुलना में अधिक वृद्धि हुई है। दुनिया के अरबपतियों की कुल संपत्ति अब वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद के 13.9 प्रतिशत के बराबर है।

यह देखते हुए कि महामारी एक स्वास्थ्य संकट के रूप में सामने आ सकती है. लेकिन, यह अब एक आर्थिक समस्या बन गई है, ऑक्सफैम ने कहा कि भारत में सबसे धनी 10 प्रतिशत लोगों के पास राष्ट्रीय संपत्ति का 45 प्रतिशत हिस्सा है. जबकि निचले 50 प्रतिशत के हिस्से के पास जनसंख्या मात्र 6 प्रतिशत हिस्सा है.

सर्वेक्षण में आगे कहा गया है कि स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक सुरक्षा पर अपर्याप्त सरकारी खर्च स्वास्थ्य और शिक्षा के निजीकरण में वृद्धि के साथ-साथ चला गया है, इस प्रकार एक पूर्ण और सुरक्षित COVID-19 रिकवरी आम लोगों की पहुंच से बाहर हो गई है.



AIPSN 2nd. Meeting

 



2nd Meeting of AIPSN-HERD: Date: 13-10-2022, Time: 6.30PM

Dr.A.I. Khan chaired the meeting

Agenda Proposed: 1) Last meeting Decisions and implementation 2) Last EC meeting Decision on Education Assemblies 3) Future Proposal 4) New Proposal for Position papers 5) AIPSN-Self Reliance Symposium 6) Any other matter

Agenda Discussed:

Agenda 1&4 : Last meeting decisions and  Implementation: Desk Convenor

• Four position papers NTA and CUET, Pressor of Practice , Multidisciplinary Institutions and MOOC were prepared. All the four papers have been prepared by Dr.Salim Shah, Dr.Dinesh Abrol, Dr. Shyamal Chkrobarthy and Ali Imam khan respectively  and circulated within desk and EC. Our thanks to all the four experts. 

• Requested the respective Desk Convenors  to prepare the remaining position papers. The following have accepted to prepare position: Dr.Parthiba Basu on Agriculture,  Dr.Raghunadan on Vocational education and Lawyers Aditya Chatterjee and Roshni Sinha on legal education.We have to find out persons for Skill Devt, Eng. and Tech. There is a proposal to request Dr.Sundararaman for writing on Medical Education. The topic on Teacher Education will be prepared by Dr.A.I.Khan. Putting in website and sending for translation to states would be done after webinars as per EC decisions.

Decisions: To have webinars on  two position papers  in one webinar each. The webinars will be held after Diwali. We can involve JFME and AIFUCTO and state Hr.Edn. groups as participants in addition to PSM representatives.. After finalisation of the  position papers will be uploaded  on google drive to be accessed by members. Dr.Prajval is requested to do. The dates of webinar will be finalised and confirmed in due course of time.


Agenda 2 &3: AIPSN EC decisions on NEP resistant movement: Gen.Sec.,AIPSN, Asha reported the Educational Assemblies from panchayat  level to  national level on the implementation of NEP-2020. She asked the members to go through the resource material for education assembly. Following which Convenor Rajamanickam listed out the campaign proposed on Higher education in the EC. 




Decisions: 

Implementation needs the following: Need a state level nodal person for this assemblies. Make students Assemblies serious by putting alternatives. Possible with JFME and other platform. An integrated  campaign literature is needed which may be translated by state PSMs .One dialogue paper is needed to have dialogue with students. Target audience may be fixed-The dialogue paper may be prepared for target audience like UG students, PG students and Research students.Three notes of dialogue -4-6 pages of each note- by Oct. 30th. Issues on Deemed university and Private University may also be placed for discussion.


Agenda 5: Self Reliance Symposium: Dr.Dinesh  Abrol reported about the one session on topics of Higher Education and Research related to self reliance. Decided to use these papers for our campaign.


Concluding Remarks: Finally Dr.A.I.Khan Chairperson, concluded the meeting by saying that the resource and dialogue materials would be  simple and easily transacted Professional associations may be associated at state level and district level for holding a convention. 


Members Present:

• Dr.Salim Shah 2) Prof.Shyamal Chakraborthy 3)Dr.A.I.Khan 4)Dr.Ratheesh Krishnan5)Dr. Promod  Gauri 6)Dr.Dinesh Abrol7)Dr.Prajval 8)Asha Mishra (Gen.Sec.) and 9) P.Rajamanickam, (Convenor) attended the meeting


रविवार, 23 अगस्त 2020

आज का हरियाणा-बहस के लिए

 आज का हरियाणा-बहस के लिए


आज का हरियाणा-बहस के लिए
रणबीर दहिया
1857 की आजादी की पहली जंग में हरियाणा वासियों की काफी महत्वपूर्ण हिस्सेदारी रही। मगर उसके बाद विभाजन कारी ताकतों का सहारा लेकर अंग्रेजो ने हरियाणा की एकता को काफी चोट पहुंचाई। बाद में हरियाणा में यह कहावत चली कि ‘साहब की अगाड़ी और घोड़े की पिछाड़ी’ नहीं होना चाहिये ा नवजागरण के दौर में हरियाणा में आर्य समाज भी काफी लेट आया। महिला षिक्षा पर बहुत जोर लगाया आर्य समाज ने मगर सहषिक्षा का डटकर विरोध किया। एक और कहावत का चलन भी हुआ...म्हारे हरियाणा की बताई सै या विद्या की कमजोरी, बांडी बैल की के पार बसावै जब जुआ डालदे धोरी।
ंआज का साम्राज्यवाद पहले के किसी भी समय के मुकाबले ज्यादा संगठित,ज्यादा हथियारबन्द और ज्यादा विध्वंसक है। नवस्वतंत्र या विकासषील देषों की खेतियोंए देसी उद्योग धन्धों और सामाजिक संस्कृतियों को तबाह करने पर लगा है।दुनिया भर में साम्राज्यवादी वैरूवीकरण की यही विध्वंसलीला हम देख रहे हैं। नव सांमन्तवाद और नवउदारीकरण का दौर हरियाणा में पूरे यौवन पर नजर आता है। जहां एक तरफ हरियाणा ने आर्थिक तौर पर किसानों और कामगरों तथा मध्यमवर्ग के लोगांेे के अथक प्रयासों से पूरे भारत में दूसरा स्थान ग्रहण किया है वहीं दूसरी तरफ हरियाणा के ग्रामीण समाज का संकट षहरों के मुकाबले ज्यादा तेजी से गहराता जा रहा है। सामाजिक सूचकांक चिन्ताजनक स्थिति की तरफ इषारा करते नजर आते हैं।भूखी, नंगी, अपमानित और बदहाल आाबादी के बीच छदम सम्पन्नता के जगमग द्वीपों जैसे गुड़गांव पर जष्न मनाते इन नये दौलतमंदों का सफरिंग हरियाणा से कोई वासता नजर नहीं आता। कुछ भ्रश्ट राजनितिज्ञों, भ्रश्ट पुलिस अफसरों, भ्रश्ट नौकरषाहों तथा भ्रश्ट कानून के रखवालों , गुण्डों के टोलों के पचगड्डे ने काले धन और काली संस्कृति को हरियाणा के प्रत्येक स्तर पर बढ़ाया है। फिलहाल देष के और हरियाणा के दौलतमंदों का बड़ा हिस्सा साम्राज्यवादी वैष्वीकरण का पैरोकार बना हुआ नजर आता है। वह सुख भ्रान्ति का षिकार है या समर्पण कर चुका है। वह पूरे हरियाणा या पूरे देष के बारे में नहीं महज अपने बारे में सोचता है। फसलों की, जमीन के बढ़ते बांझपन के कारण, पैदावार कम से कमतर होती जा रही है। तालाबों पर नाजायज कब्जे कर लिये गये जिनके चलते उनकी संख्या कम हो गई और जो बचे उनके आकार छोटे होते गये। अन्धाधुन्ध कैमिकल खादों और कीट नाषकों के इस्तेमाल के कारण जमीन के नीचे का पानी प्रदूशित होता जा रहा है। गांव की षामलात जमीनों पर दबंग लोगांे ने कब्जे जमा लिए हैं। सरकारी पानी की डिगियों की बुरी हालत है। पीने के पानी का व्यवसायिकरण बहुत से गावों में टयूबवैलों के माध्यम से हो गया। मगर गलियों का बुरा हाल है। यदि पक्की भी हो गई हैं तो भी पानी की निकासी का कोई भी उचित प्रबन्ध न होने के कारण जगह जगह पानी के चब्बचे बन गये हैं जो बहुत सी बीमारियों के जनक हैं। बिजली ज्यादातर समय गुल रहती है। बैल आमतौर से कहीं कहीं बचे हैं। भैंसों के सुआ लगा कर दूध निकालने की कुरीति बढ़ती जा रही है। सब्जियों में भी सुआ लगाने का चलन बहुत बढ़ता जा रहा है। खेती की जोत का आकार कम से कमतर हुआ है और दो एकड़ या इससे कम जोत के किसानों की संख्या किसी भी गांव में कुल किसानों की संख्या में सबसे जयादा है। गांव के सरकारी स्कूलों का माहौल काफी खराब हो रहा है। इन स्कूलों में खाते पीते व दबंग परिवारों के बच्चे नहीं जाते। इसलिए उनकी देखभाल भी नहीं बची है। दलित और बहुत गरीब किसान परिवार के बच्चे ही इन स्कूलों में जाते हैं। उपर से सैमैस्टर सिस्टम और बहुत दूसरी नीतिगत खामियों के चलते माहौल और खराब हो रहा है।इस सबके चलते प्राइवेट स्कूलों की बाढ़ सी आ गई है। उंची फीसें इन स्कूलों का फैषन बन गया है। बीएड के कालेजों की एक बार बाढ़ आईए फिर नर्सिंग कालेजो की और फिर डैंटल कालेजों की। ज्यादातर प्राईवेट सैक्टर में हैं। बी एड कालेजों में से ज्यादातर बन्द होने के कगार पर हैं। प्राईवेट सैक्टर में दुकानदारी बढ़ी है और षिक्षा की गुणवता काफी कम हुई है। इन की समीक्षा अपने आप में एक लेख की मांग करता है। स्वास्थ्य के क्षे़त्र में 90 के बाद प्राईवेट सैक्टर 57 प्रतिषत हो गया है। गांव के सबसैंटर में,प्राईमरी स्वास्थ्य केन्द्र में या सामुदायिक केन्द्र में क्या हो रहा है यह गांव के दबंगों की चिन्ता का मसला कतई नहीं है। बल्कि इनमें काम करने वाले कुछ भ्रश्ट कर्मचारियों के साथ सांठगांठ करके ठीक काम करने वाले डाक्टरों व दूसरे कर्मचारियों को परेषान किया जाता है। गांव में सरकार द्वारा बनाई गई डिगियों का इस्तेमाल न के बराबर हो रहा है जिसके चलते प्राइवेट ट्यूबवैलांे से पानी खरीदना पड़ रहा है । अब भी पीने के पानी के कुंए अलग अलग जातियों के अलग अलग हैं। बहुत कम गांव हैं जहां सर्वजातीय कंुए हैं। खेती में ट्रैक्टर का इस्तेमाल बहुत बढ़ गया है। आज ट्रैक्टर से एक एकड़ की बुआही के रेट 350-400रुपये हो गये हैं। ट्यूबवैल से एक एकड़ की सिंचाई के रेट 80 रुपये घण्टा हो गये हैं। थ्रैशर से गिहूं निकालने के रेट1500रुपये प्रति एकड़ हो गये हैं। हारवैस्टर कारबाईन से गिहूं कटवाने के 1400 रुपये प्रति एकड़ और निकलवाने के रैपर के रेट 1200 प्रति एकड़ हो गये हैं। बड़ी बड़ी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का सामान हरेक गांव की छोटी से छोटी दुकानों पर आम मिल जाता है। 8-10 दुकानों से लेकर 40-50 दुकानों का बाजार छोटे बड़े सभी गांव में मौजूद है। छोटी छोटी किरयाने की दुकानों पर दारु के प्लास्टिक के पाउच आसानी से उपलब्ध हैं। पहले का डंगवारा जिसमें एक एक बैल वाले दो किसान मिलकर खेती कर लेते थे बिल्कुल खत्म हो गया है। पहले दो एकड़ वाला 10 एकड़ वाले की जमीन बाधे पर लेकर बोता रहा है और काम चलाता रहा है। साथ एक दो भैंस भी रखता रहा है जिसका दूध बेचकर रोजाना के खर्चे पूरे करता है। पहले कहावत थी‘ ‘दूध बेच दिया इसा पूत बेच दिया’। आज दूध भी बेचना पड़ता है और बेटा भी बेचना पड़ता है। मगर आज 10 किल्ले वाला भी दो किल्ले वाले की जमीन बाधे पर लेकर बोता है। खेती में मषीनीकरण तेजी से हुआ और हरित क्रांन्ति का दौर षुरु हुआ। हरित क्रान्ति ने बहुत नुकसान किये हैं जो अपने आप में एक बहस और रिसर्च का विशय है। मगर किसानी के एक हिस्से को लाभ भी बहुत हुआ है। एक नया नव धनाढ़य वर्ग पैदा हुआ है हरियाणा में जिसका हरियाणा के हरेक पक्ष पर पूरा कब्जा है। इन्ही के दायरों में अलग अलग जातों के नेताओं का उभरना समझ में आता हैं । मसलन चौधरी देवीलाल जाटों के नेता, चौधरी चान्द राम दलितों के नेता- उनमें भी एक हिस्से के-। पंडित भगवतदयाल षर्मा पंडितों नेता ,राव बिरेन्द्र सिंह अहीरों के नेता आदि। इस धनाढ़य वर्ग का एक हिस्सा आढ़तियों में षामिल हो गया है। यह कम जमीन वाले किसान की कई तरह से खाल उतार रहा है। पुराने दौर के परिवारों में से डी एल एफ ग्रूप और जिन्दल ग्रूपों ने राश्टीय स्तर पर पहचान बनाई है। इसी धनाढ़य वर्ग में से कुछ भठ्ठों के मालिक हो गये हैं ,दारु के ठेकों के ठेकेदार हैं, प्राप्रटी डीलर बन गये हैं। नेताओं के बस्ता ठाउ भी इन्ही में से हैं। हरेक विभाग के दलाल भी इन्हीं लोगों में से पैदा हुए हैं। इन ज्यादातरों के और भी कई तरह के बिजिनैष हैं। इनका जीवन ए.सी. जीवन में बदल गया है चाहे षहर में रहते हों या गांव में। हर तरह के दांव पेच लगाने में यह तबका बहुत माहिर हो गया है। जिन लोगांें की हाल में जमीने बिकी हैं उन्होंने पैसा इन्वैस्ट करने का मन बनाया मगर पैसा लगाने की उपयुक्त जगह न पाकर वापिस गांव में आकर मकान का चेहरा ठीक ठ्याक कर लिया और एक 8-10 लाख की गाड्डी कार ले ली। एक मंहगा सा मोबाइल ले लिया। जिनके पास कई एकड़ जमीन थी और संयुक्त परिवार था उन्होंने सिरसा की तरफ या कांषीपुर में या मध्यप्रदेष में खेती की जमीनों में यह पैसा लगा दिया। कुछ लोगों ने 200-300 गज का प्लॉट षहर में लेकर सारा पैसा वहां मकान बनाने पर खर्च कर दिया। आगे क्या होगा उनका? इन बिकी जमीनों पर जीवन यापन करने वाले खेत मजदूर और बाकी के तबकों का जीना मुहाल हो गया है। यह दबंगों और मौकापरस्तों के समूह हरेक कौम में पैदा हुए हैं। इनका वजूद जातीय , गोत्रों और ठोले पाने की राजनिति पर ही टिका है। ज्यादातर गांव में सड़कें पहुंच गई हैं बेषक खस्ता हालत में हों बहुत सी सड़कें। किसी भी गांव में चार पहियों के वाहनों की संख्या भी बढ़ी है। बहुराश्टीय कम्पनियों के प्रोडक्ट ज्यादातर गावों में मिलने लगे हैं। टी वी अखबार का चलन भी गांव के स्तर पर बढ़ा है। सी.डी. प्लेयर तो बहुत सें घरों में मिल जाएगा। मोबाइल फोन गरीब तबकों के भी खासा हिस्से के पास मिल जाएगा। संप्रेषन के साघन के रुप में प्रोग्रेसिव ताकतों को इसके बारे में सोचना होगा। माइग्रेटिड लेबर की संख्या ग्रामीण क्षेत्र में भी बढ़ रही है। किसानी के एक हिस्से में अहदीपन बढ़ रहा है। गांव की चौपालों की जर्जर हालत हमारे सामूहिक जीवन के पतन की तरफ इषारा करती है। नषा, दारु और बढ़ता संगठित सैक्ष माफिया सब मिलकर गांव की संस्कृति को कुसंस्कृति के अन्धेरों में धकेलने में अहम भूमिका निभा रहे हैं।पुरुश प्रघान परिवार व्यवस्था में छांटकर महिला भ्रूण हत्या के चलते ज्यादातर गांव में लड़कियों की संख्या काफी कम हो रही है। बाहर से खरीद कर लाई गई बंहुओं की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। पुत्ऱ लालसा बहुत प्रबल दिखाई देती है यहां के माईडं सैट में। हर 10 किलो मीटर पर ‘षर्तिया छोरा’ के लिए गर्भवती महिला को दवाई देने वाले मिल जाएंगे। उंची से उंची पढ़ाई भी हमारे दकियानूसी विचारों में सेंध लगाने में असफल रही लगती है। जैंडर बलाइन्ड उच्च षिक्षा ने महिला विरोधी सामन्ती सोच को ही पाला पोसा लगता है। हमारे आपस के झगड़े बढ़े हैं। इस सबके चलते महिलाओं पर घरेलू हिंसा में बढ़ोतरी हुई है। महिलाओं पर बलात्कार के केस बढ़े हैं। महिलाओं के साथ छेड़छाड़ आदि के केस बढ़े हैं जिनमें से ज्यादातर केस दर्ज ही नहीं हो पाते। कचहरियों में तलाक के केसिज की संख्या बेतहासा बढ़ रही है। सल्फास की गोली खाकर हर रोज 1 या 2 नौजवान मैडीकल पंहुच जाते हैं। 30-40 ट्रक ड्राईवर हरेक गांव में मिल जाएंगे । एडस की बीमारी के इनमें से ज्यादातर वाहक हैं। सुबह से लेकर षाम तक ताष खेलने वाली मंडलियों की संख्या बढ़ती जा रही है। युवा लड़कियों का यौन षोशण संगठित ढ़ंग से किया जा रहा है तथा सैक्ष रैकेटियर गांव गांव तक फैल गये हैं। इसके अलावा युवा लड़कियों में षादी से पहले गर्भ की तादाद बढ़ रही है। मौखिक तौर पर कुछ डाक्टरों का कहना है कि इस प्रकार के केसिज में 50 प्रतिषत से ज्यादा परिवार के सदस्य, रिस्तेदार, पड़ौसी ही होते है जो यौन षोशण करते हैं । महिला न घर के अन्दर ्रसुरक्षित रही है न घर से बाहर। युवा लड़कियों का गांव की गांव में यौण उत्पीड़न हरियाणवी ग्रामीण समाज की भयंकर तसवीर पेष करता है। गांव के युवाओं -लड़के लड़कियों - को अपनी स्थगित ऊर्जा का सकारात्मक इस्तेमाल करने का कोई अवसर हमारी दिनचर्या में नहीं है। इस सब के बावजूद बहुत सी लड़कियों व महिलाओं ने खेलों में हरियाणा का नाम रोषन किया है। केबल टी. वी. ज्यादातर बड़े गांव में पहुंच गया है। टी वी में आ रही बहुत सी अच्छी बातों के साथ साथ देर रात बहुत सी जगह बल्यू फिल्में दिखाई जाती हैं। युवाओं में आत्म हत्या के केसिज बढ़ रहे हैं। महिलाओं के दुख सुख की अभिव्यक्ति महिला लोक गीतों में साफ झलकती दिखाई देती है। हमारे सांगों में पितृसतात्मक मूल्यों का बोलबाला दिखाई देता है। इसके साथ साथ महिला विरोधी और दलित विरोधी रुझान भी साफ झलकते हैं। मूल्यों के संदर्भ में हमारा साहित्य दबंग के हित की संस्कृति का ही निर्वाह करता नजर आता है खासकर ज्यादातर सांगों के कथानक में। पूरे हरियाणवी चुटकलों के भण्डार में एक सेकुलर चुटकुला गड़ों में इन्होंने समझौते करवाये उनमें 100 में से 99 फैंसले दबंग के हक में और पीड़ित के खिलाफ किये गये। बलात्कारी के केस के समझौतों में बलात्कारी को ही राहत दिलवाई गई। कत्ल के केस में जेल में बन्द कातिल को ही राहत दिलवाई गई ।ं तरीके अलग अलग हो सकते हैं मगर नतीजे हमेषा पीड़ित के खिलाफ ही हुए। कमजोर के हक में न्यायकारी फैंसला षायद ही कोई हों। इसी प्रकार ब्याह षादी के मामलों में गांव की गांव और गोत की गोत का केस एक मनोज बबली का ही केस है। बाकी सारे के सारे केस दो गौतों के बीच के हैं जिनमें ज्यादातर में बच्चों के माता पिताओं को बहन भाई बन कर रहने के फतवे जारी किए गये हैं और प्रेमियों के कत्ल किये गये हैं। या दूसरी तरह के उत्पीड़न किये गये हैं। राई का पहाड़ बनाया जा रहा है। असली मुद्दों से युवाओं का ध्यान बांटा जा रहा है। भावनात्मक स्तर पर लोगांे की भावनाओं से खिलवाड़ किया जा रहा है। किसानी के संकट से किसानों को दिषा भ्रमित किया जा रहा है। गांव के युवा लड़के और लड़की जिन्दगी के चौराहे पर खड़े हैं। एक तरफ नवसामन्तवादी और नवउदारवादी अपसंस्कृति का बाजार उन्हें अपनी ओर खींच रहा है। दूसरी ओर बेरोजगारी युवाओं के सिर पर चढ़ कर इनके जीवन को नरक बनाए है। नषा , दारु, सैक्स, पोर्नोग्राफी उसको दिषाभ्रमित करने के कारगर औजारों के रुप में इस्तेमाल किए जा रहे हैं। साथ ही समाज में व्याप्त पिछड़े विचारों और रुढ़ियों को भी इस्तेमाल करके इनका भावनात्मक षोशण किया जा रहा है। हरियाणा में खाते पीते मध्यमवर्ग और अन्य साधन सम्पन्न तबकों का साम्राज्यवादी वैष्वीकरण को समर्थन किसी हद तक सरलता से समझ में आ सकता है जिनके हित इस बात में हैं कि स्त्रियां,दलित,अल्पसंख्यक और करोड़ों निर्धन जनता नागरिक समाज के निर्माण के संघर्श से अलग रहें। लेकिन साधारण जनता अगर फासीवादी मुहिम में षरीक कर ली जाती है तो वह अपनी भयानक असहायता, अकेलेपन, हताषा,अन्णसंषय,अवरुद्ध चेतना , पूर्व ग्रहों उदभ्रांत कामनाओं के कारण षरीक होती है। फासीवाद के कीड़े जनवाद से वंचित ओर उसके व्यवहार से अपरिचित, रिक्त, लम्पट और घोर अमानुशिक जीवन स्थितियों में रहने वाले जनसमूहों के बीच आसानी सेपनपते हैं। यह भूलना नहीं चाहिये कि हिन्दुस्तान की आधी से अधिक आबादी ने जितना जनतन्त्र को बरता है उससे कहीं ज्यादा फासीवादी परिस्थ्तिियों में रहने का अभ्यास किया है। इसमें कोई षक नहीं कि हरियाणा में जहां आज अनैतिक ताकत की पूजा की संस्कृति का गलबा है वहीं अच्छी बात यह है कि षहीद भगत सिंह से प्रेरणा लेते हुए युवा लड़के लड़कियों का एक हिस्सा इस अपसंस्कृति के खिलाफ एक संुसंस्कृत सभ्य समाज बनाने के काम में सकारात्मक सोच के साथ जुटा हुआ है। साधुवाद इन युवा लड़के लड़कियों को। इतने बडे़ संकट को कोई जात अपनी अपनी जात के स्तर पर हल करने की सोचे तो मुझे संभव नहीं लगता । कैसे सामना किया जाए इसके लिए विभिन्न विचारकों के विचार आमन्त्रित हैं।
कुछ विचारणीय बिन्दू इस प्रकार हो सकते हैं-

1. भेड़ों कि तरह बेघर लोगों का शहरों के ख़राब से ख़राब घरों में बढ़ता जमावड़ा2. सभी सामाजिक नैतिक बन्धनों का तनाव ग्रस्त होना तथा टूटते जाना3. परिवार के पितरी स्तात्मक ढांचे में अधीनता, (परतंत्रता ] का तीखा होना4. पारिवारिक रिश्ते नाते ढहते जाना --- युवाओं के सामने गंभीर चुनौतीयाँ5. परिवारों में बुजुर्गों की असुरक्षा6. महिलाओं और बच्चों पर काम का बोझ बढ़ते जाना] असंगठित क्षेत्र में सुविधाओं का भी काफी अभाव है7. मजदूर वर्ग को पूर्ण रूपेण ठेकेदारी प्रथा में धकेला जाना8. गरीब लोगों के जीने के आधार संकुचित होना9. गाँव से शहर को पलायन बढ़ना तथा लम्पन तत्वों की बढ़ोतरी ] शहरों केविकासमें]अराजकता]ठेक्र्दारों और प्रापर्टी डीलरों का बोलबाला10. जमीन की उत्पादकता में खडोत ] पानी कि समस्या ] सेम कि समस्या11. कृषि से अधिक उद्योग कि तरफ व व्यापार की तरफ जयादा ध्याn12. स्थाई हालत से अस्थायी हालातों पर जिन्दा रहने का दौर13. अंध विश्वासों को बढ़ावा दिया जाना ] हर दो किलोमीटर पर मंदिर का उपजाया जाना14. अन्याय का बढ़ते जाना15. कुछ लोगों के प्रिविलिज बढ़ रहे है16. मारूति से सैंट्रो कार की तरफ रूझान] आसान काला धन काफी इकठ्ठा किया गया है17. उत्पीडन अपनी सीमायें लांघता जा रहा है ] रूचिका कांड ज्वलंत उदाहरण है ]18. व्यापार धोखा धडी में बदल चुका है19. शोषण उत्पीडन और भ्रष्टाचार की तिग्गी भयंकर रूप धार रही है20. प्रतिस्पर्धा ने दुश्मनी का रूप धार लिया है21. तलवार कि जगह सोने ने ले ली है22. वेश्यावृति दिनोंदिन बढ़ती जा रही है23. भ्रम व अराजकता का माहौल बढ़ रहा है ] धिगामस्ती बढ़ रही है24. संस्थानों की स्वायतता पर हमले बढ़ रहे हैं25. लोग मुनाफा कमा कर रातों रात करोड़ पति से अरब पति बनने के सपने देख रहे हैं और किसी भी हद तक अपने को गिराने को तैयार हैं26. खेती में मशीनीकरण तथा औद्योगिकीकरण मुठ्ठी भर लोगों को मालामाल कर गया तथा लोक जन को गुलामी व दरिद्रता में धकेलता जा रहा है27. बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का शिकंजा कसता जा रहा है28. वैश्वीकरण को जरूरी बताया जा रहा है जो असमानता पूर्ण विश्व व्यवस्था को मजबूत करता जा रहा है29. पब्लिक सेक्टर की मुनाफा कमाने वाली कम्पनीयों को भी बेचा जा रहा है30. हमारी आत्म निर्भरता खत्म करने की भरसक नापाक साजिश की जा रही हैं31. साम्प्रदायिक ताकतें देश के अमन चैन के माहौल को धाराशाई करती जा रही हैं32. गुट निरपेक्षता की विदेश निति से खिलवाड़ किया जा रहा है33. युद्ध व सैनिक खर्चे में बेइंतहा बढ़ोतरी की जा रही है34. परमाणू हथियारों की होड़ में शामिल होकर अपनी समस्याएँ और अधिक बढ़ा ली हैं35. सभी संस्थाओं का जनतांत्रिक माहौल खत्म किया जा रहा है36. बाहुबल. पैसे , जान पहचान , मुन्नाभाई , ऊपर कि पहुँच वालों के लिए ही नौकरी के थोड़े बहुत अवसर बचे है मैं इस पक्ष पर अभी जान बूझ कर कुछ नहीं कह रहा ताकि हिड्डन अजैंडे की समस्या से बचा जा सके। संस्कृति को भी सांझी संस्कृति के रुप में ही बचाया जा सकता है न कि संकुचित दायरों में बांधकर।
रणबीर सिह

सोमवार, 22 जून 2020

Kharak Jatan

 Kharak Jatan  2011 Census Details

Kharak Jatan Local Language is Hindi. Kharak Jatan Village Total population is 3893 and number of houses are 765. Female Population is 46.2%. Village literacy rate is 63.3% and the Female Literacy rate is 24.9%.

Population


Census ParameterCensus Data
Total Population3893
Total No of Houses765
Female Population %46.2 % ( 1798)
Total Literacy rate %63.3 % ( 2464)
Female Literacy rate24.9 % ( 968)
Scheduled Tribes Population %0.0 % ( 0)
Scheduled Caste Population %24.6 % ( 958)
Working Population %43.6 %
Child(0 -6) Population by 2011488
Girl Child(0 -6) Population % by 201146.3 % ( 226)

पृथ्वी.सदृश ग्रहों की खोज

पृथ्वी.सदृश ग्रहों की खोज
सुदूर तारों के गिर्द घूमते पृथ्वी.सदृश ग्रहों की खोज के प्रति बढ़े हुए उत्साह के बीच अमेरिका के मैसाचुसेट्स
इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, बेल्जियम के यूनिवर्सिटी ऑफ लीग तथा अन्य राष्ट्रों से संबद्ध खगोलविदों
के एक अंतर्राष्ट्रीय दल ने पृथ्वी से लगभग 39 प्रकाश.वर्ष दूर कुंभ (ऐक्वेरियस) तारामंडल में स्थित
एक सफेद बौने तारे का परिक्रमण करते तीन ग्रहों को खोजने की रिपोर्ट जारी की है। खगोलविदों के
अनुसार, नए खोजे गए ग्रहों के आकार एवं तापमान हमारे शुक्र और पृथ्वी ग्रह से समानता रखते हैं और
यह सौरमंडल से बाहर जीवन की खोज के लिए अब तक ढूंढ़े गए सबसे अच्छे अभ्यर्थी साबित हो सकते
हैं। दल ने यूरोपीयन सदर्न आब्जर्बेटरी की चिली स्थित ला सिला वेधशाला की 0.6 मीटर रोबोटीय
ट्रैपिस्ट (ट्रांजिटिंग प्लेनेट्स एंड प्लेंटीसिमल्स स्मॉल टेलीस्कोप (TRAPPIST) टेलीस्कोप का
प्रयोग अति.शीतल बौने तारों यानी ऐसे तारों को अवलोकित करने के लिए किया, जो सूर्य से कहीं
कम तापमान वाले एवं अधिक धुंधले हैं। सफेद बौने तारे को ट्रैपिस्ट-1 नाम दिया गया है (नेचर, 2 मई
2016। DOI: 10.1038/ नेचर 17448)।
           सफेद बौने तारे का प्रेक्षण लेने के दौरान खगोलविदों के दल ने बेल्जियम की यूनिवर्सिटी
ऑफ लीग से संबद्ध इंस्टिट्यूट द एस्ट्रोफिजिक एट जियोफिजिक के माइकेल गिलॉन के नेतृत्व में पाया
कि यह धुंधला एवं न्यून तापमान वाला तारा निश्चित समय अंतरालों पर कुछ और हल्का हो रहा था। यह
इस बात का सूचक था कि तारे और पृथ्वी के बीच अनेक पिंड गुजर रहे थे। विशद विश्लेषण द्वारा पता
चला कि यह धुंधलाना उस तारे का परिक्रमण करते तीन ग्रहों, जो आकार में पृथ्वी के समान ही थे, के
कारण ही था। बड़े टेलीस्कोपों, जिनमें चिली स्थित यूरोपीयन सदर्न आब्जर्बेटरी के 8 मीटर वेरी लार्ज टेलीस्कोप
में लगा हॉक.1 नामक उपकरण भी शामिल है, द्वारा लिए गए प्रेक्षणों से पता चला कि ट्रैपिस्ट.1 तारे
का परिक्रमण करते ग्रहों का आकार पृथ्वी से बहुत समानता रखता है। इनमें से दो ग्रहों की कक्षीय अवधि
क्रमशः 1.5 दिन तथा 2.4 दिन है तथा तीसरे ग्रह की कक्षीय अवधि का परिसर 4.5 दिन से 73 दिन
के बीच है। खगोलविदों के अनुसार, ‘‘इतने लघु कक्षीय अवधियों के चलते, पृथ्वी से सूर्य जितना
दूर है, उसकी तुलना में ये ग्रह अपने तारे के 20 से लेकर 100 गुना तक अधिक निकट हैं।
इस ग्रहीय प्रणाली की आकारीय संरचना हमारे सौरमंडल की बनिस्बत बृहस्पति के चंद्रमाओं से
अधिक समानता रखती है।’’
              खगोलविदों के अनुसार, इस तथ्य के बावजूद कि तीनों ग्रह अपने मूल बौने तारे का बहुत नजदीकी से परिक्रमण करते हैं वे बहुत अधिक ऊष्ण नहीं हैं। दो आंतरिक ग्रह पृथ्वी द्वारा सूर्य से प्राप्त विकिरण की तुलना में क्रमशः चार गुना तथा दोगुना अधिक विकिरण प्राप्त करते हैं, क्योंकि इनका तारा सूर्य से अधिक धुंधला है। हालांकि अब भी ये ग्रह इतने ऊष्ण हैं कि पृथ्वी सदृश जीवन को पनपने देने की उपयुक्त परिस्थितियां इनमें मौजूद नहीं हैं, लेकिन फिर भी खगोलविदों का यह मानना है कि इन ग्रहों के पृष्ठों पर वासयोग्य क्षेत्रों के मौजूद होने की संभावना हो सकती है। तीसरे ग्रह, जो एक बाह्य ग्रह है, की कक्षीय अवधि पूर्णतः निश्चित नहीं है लेकिन सूर्य से पृथ्वी जितना विकिरण प्राप्त करती है, यह ग्रह संभवतः उससे कम विकिरण अपने तारे से प्राप्त
करता है; फिर भी यह जीवनानुकूल क्षेत्र में हो सकता है। सुदूर ग्रहों पर जीवन के चिह्नों की तलाश के लिए खगोलविद सामान्यतः यह देखते हैं कि पारगमन करते ग्रह के वायुमंडल का उसके मूल तारे से पृथ्वी पर पहुंचने वाले प्रकाश पर क्या प्रभाव पड़ता है। लेकिन, अधिकतर तारों के गिर्द घूमते ग्रहों के लिए इस अति सूक्ष्म प्रभाव को संसूचित कर पाना अत्यंत कठिन होता है क्योंकि प्रकाश में उत्पन्न सूक्ष्म परिवर्तन या ह्रास तारे के प्रकाश की चमक की पृष्ठभूमि में दब जाता है। लेकिन, नए खोजे गए ग्रहों पर जीवन के चिह्नों की तलाश करना खगोलविदों के लिए अपेक्षाकृत सरल हो सकता है क्योंकि प्रकाश में उत्पन्न परिवर्तन या ह्रास ट्रैपिस्ट.1 जैसे सफेद बौने तारे की मद्धिम पृष्ठभूमि में संसूचन योग्य हो सकता है।
          इस खोज ने निश्चित रूप से पृथ्वेतर जीवन की तलाश को एक नई दिशा प्रदान की है क्योंकि हमारे सूर्य के निकटस्थ लगभग 15 प्रतिशत तारे अति निम्न ताप वाले बौने तारे ही हैं। यह खोज इस तथ्य को भी रेखांकित करती है कि सौरमंडल से बाहर के ग्रहों (एक्सोप्लेनेट्स) की खोज अब पृथ्वी के जीवनानुकूल सहोदरों के पाए जाने की संभाव्यता के दायरे में आ गई है। असल में, ट्रैपिस्ट एक अधिक महत्वाकांक्षी प्रायोजना, स्पेकूलूस (SPECULOOS) जिसे चिली स्थित यूरोपीयन सदर्न आब्जर्बेटरी से संबद्ध पैरानल वेधशाला में स्थापित किया जाएगा, का ही आदिप्रारूप है।
        गुजरात में मिली मंगल के सतह की प्रतिकृति अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र (स्पेस एप्लिकेशंस सेंटरः
ै।ब्.प्ैत्व्द्ध, अहमदाबाद, भारतीय प्रौद्योगिकी
संस्थान, खड़गपुर तथा नेशनल जियोफिजिकल रिसर्च
इंस्टिट्यूट (एन. जी. आर. आई.), हैदराबाद से जुड़े
भारतीय वैज्ञानिकों के एक दल ने गुजरात में मंगल
की सतह की प्रतिकृति या उसके ‘‘पार्थिव अनुरूप’’
की खोज की है। अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र.इसरो द्वारा
भारतीय मंगल अभियान के अंतर्गत आरंभ किए गए
कार्यक्रम का यह एक हिस्सा है। गुजरात के कच्छ
जिले में (भुज से 86 किलोमीटर उत्तर.पश्चिम स्थित)
मटानुमढ़ नामक स्थान से स्पेक्ट्रमिकीय अध्ययनों से
पाए गए ‘जैरोसाइट’ नामक एक विरल खनिज की
पहचान के आधार पर ही भारतीय दल ने अपनी
खोज को अंजाम दिया है। नासा की मंगल संधान
बग्घी (रोवर) अपॉरचुनिटी द्वारा सन् 2004 में लाल
ग्रह मंगल की सतह के विभिन्न भागों से इस विरल
खनिज के पाए जाने की खबरें आई थीं। उसके बाद
तो अन्य बग्घियों ने भी मंगल की सतह के अनेक
हिस्सों पर जैरोसाइट को संसूचित किया (जर्नल
ऑफ जियोफिजिकल रिसर्च: प्लेनेट्स, मार्च 2016,
क्व्प्रू 10ण्1002ध्2015श्रम्004949)।
सल्फेट खनिज जैरोसाइट को मंगल ग्रह की
आरंभिक सतह पर जलीय, अम्लीय तथा ऑक्सीकारी
अवस्थाओं का मूल संकेतक माना जाता है।
शोधकर्ता अपना यह तर्क देते हैं कि मटानुमढ़ क्षेत्र
का भौगोलिक विन्यास अपने इस असामान्य खनिज
के जमाव के कारण, मंगल पर जिन स्थलों पर
जैरोसाइट की पहचान हुई उनके भौगोलिक परिवेश
से सादृश्यता रखता है और ‘‘इस परिप्रेक्ष्य में इसे
मंगल के अनुरूप’’ माना जा सकता है। दरअसल,
शोधकर्ताओं का कहना है कि एक ‘क्लोन’ के रूप में
नए खोजे गए सौरमंडल से इतर ग्रहों में से एक
ग्रह के ऊपर से देखे गए ट्रैपिस्ट.1 नामक तारे का
एक कलाकार की कल्पना से बनाया गया चित्र
ि

सोमवार, 6 जनवरी 2020

उपभोक्तावादी संस्कृति

उपभोक्तावादी संस्कृति

    जब हम उपभोक्तावादी संस्कृति की बात करते हैं तो उपभोग तथा उपभोक्तावाद में फरक करते हैं । उपभोग जीवन की बुनियादी जरूरत है । इसके बगैर न जीवन सम्भव है और न वह सब जिससे हम जीवन में आनन्द का अनुभव करते हैं । इस तरह के उपभोग में हमारा भोजन शामिल है जिसके बिना हम जी नहीं सकते या कपड़े शामिल हैं जो शरीर ढकने के लिए और हमें गरमी , सरदी और बरसात आदि से बचाने के लिए जरूरी हैं । इस तरह जीवन की रक्षा करनेवाली या शरीर की तकलीफों को दूर करनेवाली दवाएँ , ऋतुओं के प्रकोप से बचाने के लिए घर , ये सब उपभोग की वस्तुएं हैं । औरतों और मर्दों द्वारा एक दूसरे को आकर्षित करने के श्रृंगार के कुछ साधन भी उपभोग की वस्तुओं में आते हैं ।यह बिलकुल प्राकृतिक और स्वाभाविक जरूरत है । मनुष्य में ही नहीं , पशु-पक्षियों और पेड़-पौधों में भी नर और मादा के बीच आकर्षण पैदा करने के लिए सुन्दर रंगीन बाल , रोयें और पंख , भड़कीले रूप , मीठे संगीतमय स्वर तथा तरह-तरह की गंध प्रकृति की देन हैं । इन सब गुणों की उपयोगिता जीवों में विभिन्न मात्रा में रूप , रंग , गंध , स्वर आदि के प्रति स्वभाव से प्राप्त आकर्षण से आती है । यही स्वाभाविक आकर्षण एक ऊँचाई पर मनुष्यों में सौन्दर्यबोध को जन्म देता है । इसी बोध से मनुष्य विभिन्न कलाओं और विज्ञान को जन्म देता है । अपने परिवेश को नृत्य , संगीत , चित्र , मूर्त्ति आदि से सजाना या साहित्य और विज्ञान के जरिए अपने वातावरण का प्रतीकात्मक अनुभव करना , मनुष्य को सबसे ऊँचे दर्जे का आनन्द देता है । इस प्रक्रिया में निर्मित कलावस्तु , पुस्तक आदि सब मनुष्य के स्वाभाविक उपभोग के क्षेत्र में आते हैं । संक्षेप में उपभोग की वस्तुएँ वे हैं , जिसके अभाव में हम स्वाभाविक रूप से अप्रीतिकर तनाव का अनुभव करते हैं , चाहे वह भोजन के अभाव में भूख की पीड़ा से उत्पन्न हो अथवा संगीत एवं कलाओं के अभाव में नीरसता की पीड़ा से।
    इसके विपरीत ऐसी वस्तुएँ , जो वास्तव में मनुष्य की किसी मूल जरूरत या कला और ज्ञान की वृत्तियों की दृष्टि से उपयोगी नहीं हैं लेकिन व्यावसायिक दृष्टि से प्रचार के द्वारा उसके लिए जरूरी बना दी गयी हैं , उपभोक्तावादी संस्कृति की देन हैं । पुराने सामंती या अंधविश्वासी समाज में भी ऐसी वस्तुओं का उपभोग होता था जो उपयोगी नहीं थीं बल्कि कष्टदायाक थीं – उदाहरण के लिए चीन में कुलीन महिलाओं के लिए बचपन से पाँव को छोटे जूते में कसकर छोटा रखने का रिवाज । लेकिन यह प्रचलन औरतों की गुलामी और मर्दों की मूर्खता का परिणाम था । अत: शोषण की समाप्ति या चेतना बढ़ने के साथ इसका अंत होना लाजमी था । लेकिन उपभोक्तावादी संस्कृति ऐसी वस्तुओं को शुद्ध व्यावसायिकता के कारण योजनाबद्ध रूप से लोगों पर आरोपित करती है और मनोविज्ञान की आधुनिकतम खोजों का इसके लिए प्रयोग करती है कि इन वस्तुओं की माया लोगों पर इस हद तक छा जाये कि वे इनके लिए पागल बने रहें ।

  विज्ञापन का जादू

    एक उदाहरण बालों को सघन और काला रखने की दवाओं तथा तेलों का है । सर्वविदित है कि अभी तक बालों को गिरने या सफेद होने से रोकने का कोई उपचार नहीं निकला है । लेकिन हर रोज ऐसे विज्ञापन निकलते रहते हैं जो लोगों में यह भ्रम पैदा करते हैं कि किसी खास दवा या तेल से उनके बालों की रक्षा हो सकती है और इनसे प्रभावित हो कर लोग इन उपचारों पर अंधाधुंध खरच करते हैं । यही हाल दाँत के सभी मंजनों का है । अभी तक कोई ऐसा मंजन नहीं निकला है जो दाँतों की बीमारियों को दूर करे या उन्हें रोग लगने से बचाये। फिर भी पत्र-पत्रिकाओं के पृष्ठ चमकीले दाँतों वाली महिलाओं की तस्वीरों से भरे रहते हैं जो किसी न किसी कम्पनी के मंजन के चमत्कार के रूप में अपने दाँतों का प्रदर्शन करती होती है । एक के बाद एक सभी दाँतों के खराब हो जाने के बाद भी लोग उपचार कि दृष्टि से मंजनों की निरर्थकता नहीं देख पाते । ऐसा गहरा असर इस प्रचार के जादू का होता है । यह स्थिति बिलकुल अशिक्षित समाज में जादू-टोने के प्रति फैले अन्धविश्वास से भिन्न नहीं है । लेकिन इस अन्धविश्वास के शिकार मूल रूप से शिक्षित कहे जाने वाले लोग ही हैं ।
    किसी विशेष कम्पनी की साड़ी में सजी सुन्दर औरत , सूट में सजा सुन्दर नौजवान , कोका-कोला की बोतलें लिए समुद्र तट के रमणीक महौल में खड़े सुन्दर स्त्री-पुरुष , विशेष कम्पनी के बेदिंग सूट में समुद्र तट पर क्रीड़ा करती बालाएँ । इन सब के भड़कीले इश्तहार एक ऐसा मानसिक महौल तैयार करते हैं कि लोग मॉडलों ( इश्तहार के सुन्दर स्त्री-पुरुष ) की सुन्दरता का राज विभिन्न तरह के परिधानों और कोका-कोला में देखने लगते हैं । बड़ी तोंदवाले लालाजी और दो क्विंटल वजनवाली सेठानी भी इन कम्पनियों का सूट या बेदिंग सूट पहने विज्ञापन के मॉडलों जैसे अपने रूप की कल्पना करने लगती हैं । फिर दुकान में इन कम्पनियों के परिधानों और कोका-कोला की तलाश शुरु हो जाती है । इस तरह धीरे-धीरे सुन्दरता का अर्थ मनुष्य की स्वाभाविक सुन्दरता , जो उसके स्वास्थ्य और स्वभाव से आती है , नहीं रहकर खास-खास कम्पनियों के बने मोजे से ले कर टोपी तक में सजावट बन जाता है । सुन्दरता का मतलब खास तरह के परिधानों में सजना या खास तरह के क्रीम पाउडर से पुता होना बन जाता है । सुन्दर शब्द भी अब फैशन से बाहर होता जा रहा है , उसका स्थान ‘स्मार्ट’ ने ले लिया है जिसका सीधा सम्बन्ध , लिबास सजधज और अप-टू-डेट आदि से है । प्रचलित फैशन से सुन्दरता की परिभाषा कैसे बदल सकती है उसका एक उदाहरण हम रंग की मैचिंग में देख सकते हैं । सौन्दर्य की दृष्टि से एक ही रंग की मैचिंग यानी एक ही रंग का सारा लिबास रखना , भोंडी चीज है । सौन्दर्य रंगों की विविधता और उनके उपयुक्त संयोजन से आता है । इसी कारण राजस्थान की सरल ग्रामीण महिलाएँ अपने सस्ते लिबास में भी रंगों के उचित संयोजन से जहाँ इकट्ठी होती हैं फूलों की क्यारियों सी सज जाती हैं । लेकिन मैचिंग का पागलपन सवार हो जाने से जहाँ एक हैण्डबैग , एक जोड़ा जूता या चप्पल तथा एक रंग की लिपिस्टिक से काम चल सकता था वहाँ अब हर कपड़े के रंग के साथ सब कुछ उसी रंग का होना चाहिए ।इस तरह अब एक की जगह आधे दर्जन सामान खरीदने की जरूरत हो जाती है । पर सबसे हास्यास्पद तो यह होता है कि काले या नीले कपड़ों से मैच करने के लिए लाल होंठोंवाली सुन्दरियाँ होंठ काले या नीले रंग में रंगने लगती हैं । इस तरह की मूर्खतापूर्ण सजावट का फैशन फैलाने से लिपिस्टिक बनाने वाली कम्पनियों को अपना व्यापार बढ़ाने का सीमाहीन सुयोग प्राप्त हो जाता है ।
    यह सोचा जा सकता है कि अगर भिन्न रंग के कपड़े इकट्ठे हो गये तो वे हि कपड़े अदल-बदल कर ज्यादा दिन पहने जा सकते हैं । लेकिन ऐसा भी नहीं हो पाता , क्योंकि एक सुनियोजित ढंग से फैशन-प्रदर्शनों और प्रचार के द्वारा ऐसा मानसिक वातावरण तैयार कर दिया जाता है कि फैशन जल्दी-जल्दी बदल जायें । इस साल का बनाया कपड़ा अगले साल तक फैशन के बाहर हो जाता है और लोग इसका साहस नहीं जुटा पाते कि ‘संभ्रान्त’ लोगों की मंडली या दफ्तर आदि में ऐसे ‘आउट ऑफ डेट’ लिबास में पहुँचें ।इस तरह धड़ल्ले से कपड़े , जूते , टोपी  आदि का बदलाव होता रहता है । लोग मजबूरी में ही एक दो साल पहले का बनाया हुआ कोई कपड़ा पहनते हैं । पश्चिमी देशों में तो एक तरह की ‘थ्रो अवे’ संस्कृति , (जिसकी छाया हमारे यहाँ भी पड़ रही है) फैल रही है , यानी ऐसी चीजों का उत्पादन और प्रयोग बढ़ रहा है जिन्हें कुछ समय या एक ही बार उपयोग में लाकर फेंक दिया जाय ।
    लेकिन इस संस्कृति  को फैलाने के लिए की जाने वाली विज्ञापनबाजी का बोझ भी वे ही लोग ढोते हैं जिनके सिर पर यह संस्कृति लादी जाती  है । सबसे पहले तो कम्पनियों द्वारा प्रचारित वस्तुओं की कीमत का एक बड़ा हिस्सा विज्ञापन पर खरच होता है । कभी-कभी तो कम्पनियाँ उत्पादन से अधिक खरच अपनी वस्तुओं को प्रचारित करने में करती हैं । इस विज्ञापनबाजी के लिए काफी खरचीले शोध होते रहते हैं । पर परोक्ष रूप से विज्ञापन का बोझ फिर दुबारा उपभोक्ताओं पर ही पड़ता है । विज्ञापन पर किए गए खरच को अपनी लागत में दिखलाकर कम्पनियाँ आयकर में काफी कटौती करा लेती हैं । कम्पनियों पर की कटौती से आम लोगों पर वित्तीय बोझ बढ़ता है । इस तरह विज्ञापनबाजी से लोगों पर दुहरी आर्थिक मार पड़ती है ।
    ( आगे : कृत्रिमता ही जीवन )

शुक्रवार, 23 अगस्त 2019

प्राचीन में विज्ञान और प्रौद्योगिकी

प्राचीन में विज्ञान और प्रौद्योगिकी (एस एंड टी) पर एक विशेष संगोष्ठी
भारत को संस्कृत ग्रंथों के माध्यम से चमकाने के लिए एक साइड इवेंट के रूप में आयोजित किया गया था
जनवरी 2015 में मुंबई में 102 वीं भारतीय विज्ञान कांग्रेस आयोजित की गई एक स्पष्ट हिंदुत्व एजेंडा, और किए गए दावों के साथ ही संगोष्ठी वहाँ, आयोजकों के रूप में राष्ट्रीय और विश्व स्तर पर दोनों सुर्खियों में उत्पन्न हुए
उम्मीद कर सकते हैं, लेकिन बहुत अलग कारणों से। हाइलाइटिंग से दूर प्राचीन भारत में महत्वपूर्ण योगदान, या अज्ञात अज्ञात को उजागर करना तथ्य, संगोष्ठी प्रस्तुतियों ने शानदार दावों को दर्शाया है विज्ञान और के बीच अंतर करने में पूरी तरह से असमर्थता या विनिवेश एक ओर इतिहास और दूसरी ओर पौराणिकता और परिष्कार। कई प्रेस रिपोर्टों के अनुसार, जिनका खंडन नहीं किया गया था, और पेपर प्रस्तुतकर्ताओं द्वारा संबोधित प्रेस कॉन्फ्रेंस की रिपोर्ट और संगोष्ठी आयोजकों (कागजात की प्रतियां उपलब्ध नहीं कराई गईं), एक
प्रस्तुति ने दावा किया कि प्राचीन भारत के पास उन्नत विमानन था तकनीक के रूप में 7000 ईसा पूर्व के रूप में वापस, 40-विशाल विमान शामिल हैं यहां तक ​​कि अंतर-ग्रहों की यात्रा भी कर सकता है। के जवाब में बाद की आपत्तियों में यह असंभव था, प्रस्तुतकर्ता ने कहा, "आधुनिक विज्ञान वैज्ञानिक नहीं है।" एक और प्रस्तुति ने दावा किया कि भविष्य शल्य चिकित्सा तकनीक सुश्रुत संहिता में दर्ज की गई है “बाद में नहीं 1500 ईसा पूर्व, "और ऋग्वेद में भी उल्लेख किया गया है" जैसा माना जाता है ब्रह्मांड का पहला पाठ (एसआईसी), जो बाद में 6000 ईसा पूर्व नहीं बनाया गया था। " यह सब इस तरह के कई अन्य दावों के बाद आया था पिछले अवसरों पर हिंदुत्व के प्रस्तावक (देखें) लिस्टिंग के लिए इस तरह के कई हिंदुत्व के दावे)। एक अस्पताल में उनके अब कुख्यात भाषण में मुंबई में समारोह, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद को प्राचीन कहा भारत उन्नत प्लास्टिक सर्जरी तकनीकों को जानता था जैसा कि देखा जा सकता है भगवान गणेश एक हाथी का सिर मानव शरीर से जुड़ा हुआ है, और महाभारत में इन विट्रो फर्टिलाइजेशन का भी ज्ञान कुंती ने गर्भ के बाहर कर्ण को जन्म दिया था।
मीडिया में और भारत में वैज्ञानिकों की आलोचना का एक तूफान (ज्यादातर) अनाम) और इन और अन्य दावों के लिए विदेश में, आपत्ति की अवैज्ञानिक कथन, इतिहास और पौराणिक कथाओं का मिश्रण, और कथन
उचित सबूत के बिना बनाया जा रहा है, वैज्ञानिक की आधारशिला विधि और भारतीय विज्ञान कांग्रेस की ही। जिसने भी सोचा   आलोचना से हिंदुत्व के प्रस्तावकों को जल्दी शर्मिंदा होना पड़ा गलत साबित हुआ। और यह दिखाने के लिए कि ये "फ्रिंज" द्वारा भटकी हुई टिप्पणियां नहीं थीं तत्वों, "संघ द्वारा पीछा किए गए अप्रकाशित टिप्पणियों की एक स्ट्रिंग सरकार के मंत्री और विभिन्न संघ परिवार के प्रमुख लोग सहयोगी, प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से व्यक्त किए गए विचारों का बचाव करते हैं संगोष्ठी, या एक ही पंक्तियों के साथ अतिरिक्त दावे करना, जाहिर है कि क्या स्पष्ट रूप से मजबूत करने के लिए एक दृढ़ प्रयास का खुलासा वैचारिक अभियान।
वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार में पूर्व मंत्री और वर्तमान में उत्तर प्रदेश के राज्यपाल श्रीराम नाइक ने अपने संबोधन में कहा कांग्रेस ने, इस बात पर जोर देने की आवश्यकता महसूस की कि प्राचीन भारत ने भारी प्रगति की है चिकित्सा, खगोल विज्ञान, गणित और ज्योतिष जैसे विज्ञानों में (जोर देकर कहा), और उन्होंने कहा कि "उन लोगों के लिए जो हमारे लिए शर्मिंदा हैं इतिहास, जो आलोचकों में से किसी ने भी नहीं कहा था कि वे थे। पूर्व भाजपा राष्ट्रपति और अब गृह मंत्री और मंत्रिमंडल में नंबर 2 राजनाथ सिंह कांग्रेस के बाद कहा कि स्थानीय पंडित या ज्योतिषी होना चाहिए खगोलीय भविष्यवाणियों के लिए नासा के वैज्ञानिकों के बजाय परामर्श किया गया ग्रहण और इस तरह, एक आश्चर्य है कि क्या सरकार इतनी सलाह देगी चंद्रमा या मंगल के अगले प्रक्षेपण के लिए इसरो! उपरोक्त घटनाक्रम स्पष्ट करते हैं कि यह एक दृढ़ संकल्प था हिंदुत्व समर्थकों द्वारा एक विशिष्ट दृष्टिकोण को सामने रखने का प्रयास। यह यहाँ तर्क दिया जाता है कि ये अलग-अलग दावे और दावे हैं योगों के एक सुसंगत सेट की मात्रा, जो बेहतर अवधि के लिए चाहते हैं, प्राचीन भारत में विज्ञान पर हिंदुत्व कथा कहा जा सकता है। यह है शायद एक दृढ़ वैचारिक अभियान का अग्रदूत भी समकालीन बौद्धिक और राजनीतिक के लिए काफी महत्व है
भारत में प्रवचन
प्रस्तुत निबंध इस कथा को खोलना और उसकी जाँच करना चाहता है निहितार्थ। कंसर्टेड हिंदुत्व कथा कई अलग-अलग अभी तक परस्पर जुड़ी हुई है इस कथा में प्रस्ताव विचारणीय हैं। पहले पुरातनता का दावा है, यह विचार कि वैदिक (या संस्कृत) हिंदू सभ्यता और इसके बाद की विकासवादी अभिव्यक्तियाँ, के रूप में देखी जाती हैं भारतीय सभ्यता, दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यता है यहाँ विज्ञान और प्रौद्योगिकी का ज्ञान पूर्व दिनांकित था और बहुत दूर था अन्य सभ्यताओं में उस की अग्रिम, और इन में प्रमुख सफलताएँ खेतों को उनकी उपस्थिति से पहले कहीं और हासिल किया गया था। दूसरा, जैसा कि इस प्राचीनता से ही पता चलता है, प्राचीन भारत में ज्ञान सृजन विशुद्ध रूप से स्वदेशी प्रक्रिया और उधार ली गई अन्य सभ्यताएं थीं भारत से ज्ञान, अक्सर स्वीकृति के बिना, इस प्रकार स्थापित करना अन्य सभी की तुलना में हिंदू सभ्यता की अंतर्निहित श्रेष्ठता। तीसरा,
भारत ने इस श्रेष्ठता को बनाए रखा होगा, यह लूट और लूट के लिए नहीं था अन्य धर्मों के साथ विदेशी संस्कृतियों द्वारा दमन, लेकिन इसकी पुनः प्राप्ति कर सकते हैं हिंदू सांस्कृतिक वर्चस्व को फिर से हासिल करने और फिर से विकसित करने के द्वारा महानता    चौथा, वह आधुनिक ऐतिहासिक और सामान्य बौद्धिक समझ प्राचीन काल में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के संबंध में भारत और अन्य भारत एक विकृत, पश्चिमी और धर्मनिरपेक्ष रचना है, जिसके पास है वैदिक हिन्दू सभ्यता को कम और जानबूझकर कमजोर कर दिया गया विज्ञान में योगदान, और जिसे विशेष रूप से प्रचारित किया गया है एक पश्चिमी, मुख्य रूप से वामपंथी, अभिजात वर्ग द्वारा भारत जिसने आंतरिक रूप से बदल दिया है औपनिवेशिक मानसिकता। इसलिए, हिंदुत्व के दावों का खंडन करने के लिए उन्नत साक्ष्य प्राचीन भारत में विज्ञान आंतरिक रूप से संदिग्ध है और सटीक रूप से प्रतिबिंबित होता है उन विरोधी पूर्वाग्रहों को दूर करने के लिए हिंदुत्व की कहानी कहता है। उत्तरार्द्ध दो प्रस्ताव अक्सर उप-ग्रंथों के रूप में प्रस्तुत किए जाते हैं, और उनका पूर्ण मूल्यांकन किया जाता है अभियान के रूप में मुखरता शायद अभी तक नहीं आई है। इस निबंध में यह तर्क दिया गया है कि दावे और सबूत उन्नत हैं इनमें से प्रत्येक प्रस्ताव का समर्थन स्वीकार किए गए अनुशासनात्मक उल्लंघन करता है इतिहास और विज्ञान दोनों में सिद्धांत और व्यवहार। इसके आगे तर्क दिया जाता है जबकि, इसमें से कुछ को भोलापन या अज्ञानता के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है
ये अनुशासन और उनमें किए गए पहले के काम, सामंजस्यपूर्ण हैं हिंदुत्व कथा के संदेश और मुखरता का सुझाव है कि हिंदुत्ववादी ताकतें विश्वास करती हैं, और जल्द या बाद में स्पष्ट रूप से और संक्षिप्त रूप से जोर देकर कहते हैं कि ये प्रस्ताव किसी भी सबूत की परवाह किए बिना सही हैं इसके विपरीत, इस तरह के सभी साक्ष्य बहुत के एक उत्पाद होने का अनुमान लगाया जा रहा है पक्षपात जो हिंदू राष्ट्रवादी द्वारा प्रतिहिंसा करने के लिए मांगे जाते हैं कथा।
सबूत की प्रकृति आइए पहले प्रकृति की जाँच करें इन दावों और कथनों के आधार के रूप में साक्ष्य जोड़े गए। कागज पर प्राचीन भारत में विमानन मुंबई कांग्रेस में एक-एक करके प्रस्तुत किया गया कैप्टन आनंद जे। बोर्डस, एक पायलट प्रशिक्षण के सेवानिवृत्त प्रिंसिपल कहे जाते हैं सुविधा, एक उदाहरण के रूप में लिया जा सकता है। कैप्टन बोर्डस का जुनून प्राचीन हिंदू सभ्यता की श्रेष्ठता की घोषणा स्पष्ट रूप से हो चुकी है एयरोनॉटिक्स और हिस्टोरियोग्राफी दोनों का उनका ज्ञान। कैप्टन बोर्डस के अनुसार, वैदिक में विमान के बारे में दावे अवधि ऋषि भारद्वाज द्वारा संस्कृत के ग्रंथों पर आधारित थी उस नाम से प्रजातंत्र या वंश के पूर्वज, "कम से कम 7000 साल पहले।" प्रश्न में पाठ, "वैमानिका प्रेरकं", एक परिचित के रूप में सामने आता है भारतीय विद्वानों को। यह 1974 में एक वर्ष के लिए गंभीरता से अध्ययन किया गया था प्रसिद्ध सहित वैज्ञानिकों, इंजीनियरों और संस्कृत विद्वानों की टीम एयरोस्पेस इंजीनियर, भारतीय विज्ञान संस्थान के प्रो। एच.एस. मुकुंद, बेंगलुरू। आईआईएससी अध्ययन में पाया गया कि संस्कृत में पाठ और इसके एक G.R.Josyer द्वारा लिखित अंग्रेजी में अनुवाद, चारों ओर प्रकाशित 1920, वैदिक-काल की संस्कृत के बजाय समकालीन रूप से लिखा गया था। जैसा किताब में जोसिर द्वारा कहा गया है, संस्कृत छंद स्वयं था एक सुब्बाराया शास्त्री द्वारा तय किया गया था, जिसे इसी तरह की चमक के लिए दिया गया था प्रेरणा, जिन्होंने दावा किया था कि वे उनके सामने "प्रकट" हुए थे ऋषि भारद्वाज द्वारा। विभिन्न विवरणों की जांच के बाद और पुस्तक में चित्र, IISc टीम ने निष्कर्ष निकाला कि पाठ दिखाया गया था भारी उड़ान की गतिशीलता की समझ का पूर्ण अभाव   aer वायु शिल्प की तुलना में, "वायुगतिकी के सभी सिद्धांतों को परिभाषित किया, और" कोई नहीं  विमानों [वर्णित या तैयार] में प्रवाहित होने के गुण या क्षमताएं हैं। "(इस IISc अध्ययन की रिपोर्ट इसके लेखकों के साथ उपलब्ध है) कैप्टन बोर्डस ने अपनी संपूर्ण प्रस्तुति को एक ही पाठ पर आधारित किया एक "रहस्योद्घाटन" कहा जाता है, जिसका सिद्ध होना स्वयं संदिग्ध है या कम से कम अनिश्चित, और जिसका गंभीर रूप से आकलन नहीं किया गया था, एक घातक दोष है। होने के लिए गंभीरता से लिया गया, इतिहासलेखन न केवल पाठ संबंधी संदर्भों की मांग करता है कई प्रामाणिक स्रोतों से भी, लेकिन इसके लिए भी समर्थन की आवश्यकता है अन्य प्रकार के सबूत जैसे कि कलाकृतियाँ, पुरातत्व संबंधी खोज आदि। में एविएशन के रूप में जटिल विषय के रूप में, निश्चित रूप से कुछ भी होना चाहिए ज्ञान और प्रथाओं के प्रश्न में अवधि से साक्ष्य वायुगतिकी, सामग्री, निर्माण तकनीक आदि।
हालाँकि, हिंदुत्व चैंपियन किसी के पास नहीं हैं की अवधारणा, या के बारे में बहुत परवाह करने के लिए, क्या स्वीकार्य का गठन किया सबूत या स्पष्टवादी मूल्य का आकलन कैसे करें। इसलिए से छलांग एक हाथी के सिर वाले भगवान गणेश की कल्पनात्मक धारणा अनुमान है कि यह "साबित" उन्नत कॉस्मेटिक सर्जरी के ज्ञान में
प्राचीन भारत, और कर्ण के बेदाग होने की कथा कुंती के त्याग के कुछ हिस्सों से गर्भाधान या कौरवों का जन्म
इस निष्कर्ष के गर्भ में कि प्राचीन भारत "इन विट्रो" अवश्य जानता है निषेचन या स्टेम सेल अनुसंधान। आधा-आधा बनाते-बनाते डेढ़ हो गए जो चार कहा जाता है! मिथकों और किंवदंतियों में बेदाग गर्भाधान की कहानियां
सभ्यताओं के पार, और पौराणिक आधा आदमी आधा जानवर भी बहुत हैं अन्य प्राचीन सभ्यताओं में सामान्य, उदाहरण के लिए मिनतौर (का प्रमुख) एक आदमी के शरीर पर बैल), सेंटूर (मानव चेहरे और गर्दन, घोड़े का शरीर), चिमेरा (एक शेर के सिर और शरीर के साथ, एक बकरी का सिर जो से उत्पन्न होता है) धड़, और पूंछ के लिए एक सांप)। क्या ये सभी सभ्यताएँ भी थीं कॉस्मेटिक सर्जरी का ज्ञान? एक सार्वभौमिक रूप से इन विट्रो निषेचन था ज्ञात तकनीक? पुरातनता का मुद्दा जब इस प्रकार चुनौती दी गई, तो हिंदुत्व कथा इस सवाल पर जोर देती है कि जो भी अन्य सभ्यताएं हैं ज्ञात हो सकता है, भारत पहले यह जानता था, अन्य कारणों (जैसे कि प्राचीन हिंदुओं की उत्कृष्ट प्रतिभा और दूरदर्शिता) क्योंकि प्राचीन वैदिक सभ्यता दुनिया में सबसे पुरानी है। पुरातनता का दावा हिंदू सभ्यता बदले में पहले की तारीख के आधार पर है वैदिक-संस्कृत के ग्रंथों के बिना, और कभी-कभी शाब्दिक रूप से महान महाकाव्यों, मिथकों के भीतर दावा किया गया या किंवदंतियों, यहां तक ​​कि डेटिंग का खंडन करते हुए इतिहासकारों द्वारा पहुंचे। कांग्रेस में प्रस्तुत पत्रों में, साथ ही कई में अन्य लेख, किताबें और हिंदुत्व साहित्य, 6,000-7,000 ईसा पूर्व की अवधि है अक्सर उद्धृत किया जाता है, बदले में ऋग्वेद या अन्य पाठ के आधार पर इस तरह के ऐतिहासिक काल के लिए। सुश्रुत संहिता की डेटिंग आयुर्वेदिक चिकित्सक डॉ। सावंत द्वारा "लगभग 1500 ईसा पूर्व"   संगोष्ठी, जबकि अधिकांश अधिकारियों ने इसे लगभग 500-600 ईसा पूर्व में रखा था केवल दावे के अलावा कोई तर्क नहीं। अधिकांश शैक्षणिक इतिहासकार ऋग्वेद की तिथि लगभग 1,200-2,000 मानते हैं बीसीई, जो हिंदुत्व के समर्थकों के साथ घृणा करता है, प्रो.रोमिला थापर के साथ इस संबंध में उनके बाइट नोयर होने के नाते। तारीखों के पक्ष में हिंदुत्व का तर्क कई हजार साल पहले, ज्यादातर सपोसिशन पर स्थापित होते हैं और कथनों, परिपत्र तर्क जैसे कि राम या कृष्ण के समय की डेटिंग प्रासंगिक महाकाव्य साहित्य में अवधि आधारित ज्योतिषीय संदर्भ, समर्पण इनमें से एक बहुत ही प्रारंभिक तिथि, अक्सर शाब्दिक रूप से एक युग-आधारित आयु, और इस प्रकार "दिखा" कि ऋग्वेद "संभवतः बाद में नहीं हो सकता" इस तारीख से और इसलिए "उससे पहले" कई हजार साल पहले होना चाहिए! (बस गूगल "ऋग्वेद तिथि रोमिला थापर" और हिंदुत्व देखें वेबसाइटों और ब्लॉगों के खिलाफ जोर और जोर से भरा हुआ है उसके और किसी के साथ एक अलग दृष्टिकोण के साथ!) यह जिस तरह से परे है इस निबंध का दायरा डेटिंग के सवाल को और अच्छी तरह से उजागर करता है। यह कहने के लिए पर्याप्त है कि वास्तविक मुद्दा स्वयं तारीख नहीं है, लेकिन क्या तरीके हैं एक पर पहुंचने के लिए उपयोग किया जाता है, क्या सबूत का उपयोग किया जाता है और क्या यह खड़ा है स्वीकृत इतिहासलेखन के अनुसार जांच तक। आइए हम अपना ध्यान अधिक से अधिक जोर देने की प्रेरणा की ओर दें वैदिक-संस्कृत हिंदू धर्म के लिए पुरातनता, विशेष रूप से के माध्यम से gleaned संस्कृत ग्रंथ और विशेष रूप से विज्ञान और प्रौद्योगिकी और सामान्य तौर पर ज्ञान सृजन। तीन प्रमुख संकेत की पहचान की जा सकती है और यहां संक्षेप में चर्चा की गई है। सबसे पहले, "हिंदू को गैल्वनाइज करने के लिए परिचित हिंदुत्व परियोजना है।" अभिमान, विजय के रूप में "अतीत" अपमान को दूर करना या विभिन्न धर्मों के बाहरी लोगों द्वारा अधीनता, और के लिए फिर से विश्वास का निर्माण भविष्य, वैदिक हिंदू धर्म को सबसे प्राचीन, उन्नत और के रूप में पेश करके सभी सभ्यताओं के जानकार। लेकिन यह हिंदुत्व का प्रयास खुद नहीं है एक नया, और एक सदी और आधी से ज्यादा जल्दी वापस आ जाता है उपनिवेशवाद के खिलाफ भारत में राष्ट्रीय आंदोलन के चरण। ये जल्दी भारत में बुद्धिजीवियों और कई विदेशियों द्वारा किए गए प्रयासों को उजागर करना है और यूरोपीय भाषाओं में अनुवाद, प्राचीन भारतीय, ज्यादातर संस्कृत, दर्शन, तत्वमीमांसा और विज्ञान में ग्रंथों का प्रदर्शन करने के लिए इतनी के रूप में भारतीय सभ्यता की महानता। प्राचीन भारतीय ज्ञान को पुनः प्राप्त करना और उपनिवेशवाद के खिलाफ संघर्ष में क्षमताओं की महत्वपूर्ण भूमिका थी। (फ्रांज़ फैनॉन का शानदार निबंध z ऑन द नेशनल कल्चर ’द विचर्ड ऑफ द पृथ्वी इसकी चर्चा करता है, और इसके नुकसान हालाँकि, जैसा कि अक्सर इस तरह के पुनरुत्थानवादी उत्साह के बीच होता है भारत में, बहुत मिथक-निर्माण, छद्म इतिहास और भी था रखने के एक सामान्य धागे के साथ एक पौराणिक सुनहरे अतीत का "पता लगाना" इन सभी घटनाओं को एक अनुचित रूप से प्राचीन अतीत में। तो व्यापक और ध्यान देने योग्य यह घटना थी कि समाजशास्त्रियों ने भी इसके लिए एक शब्द गढ़ा था यह: "प्राचीनकरण"! दूसरी बात यह है कि हिंदुत्व संस्करण में यह परंपरावाद नहीं है
उदासीनता के बारे में और महान उपलब्धियों के साथ एक अतीत पेश करना, लेकिन यह भी के हिंदुत्व संस्करण की अनौपचारिक स्वीकृति को बढ़ावा देने के बारे में   इतिहास। हिंदुत्व कथा में, अधिकांश इतिहासकार यूरो केंद्रित हैं सामान अगर वे पश्चिमी हैं या मैकाले के बेटे हैं, तो "मैकाले पुत्रा" हैं। आपको सबूत की ज़रूरत नहीं है क्योंकि हम कहते हैं कि ऐसा था। बहस याद रखें अयोध्या में राम मंदिर की ऐतिहासिकता पर? यह हमारी आस्था है कि राम यह बहुत जगह पर पैदा हुआ था, इसलिए यह जरूरी है। हिंदुत्व हैं प्राचीन भारत में विज्ञान के संबंध में एक ही दिशा में बढ़ रहा है? है वैज्ञानिक प्रमाणों को विश्वास के सामने अप्रासंगिक माना जाता है, जैसे
ऐतिहासिक साक्ष्य है? वैदिक-संस्कृतिक विशिष्टता तीसरे, थोड़ा ध्यान देने वाला पहलू संस्कृत ग्रंथों पर जोर। यहाँ स्पष्ट प्रेरणा वह है प्राचीन भारत के संस्कृत ग्रंथ वैदिक पर लगभग विशेष रूप से ध्यान केंद्रित करेंगे या प्रारंभिक हिंदू धर्म, किस बारे में ध्यान भटकाने की कोई गुंजाइश नहीं है भारतीय विचारकों ने यूनानी, रोमन, अरब, फारसी और से सीखा मध्य एशिया या चीन के प्राचीन या मध्ययुगीन काल में। हिंदुत्व कथा का समग्र संस्कृति या सांस्कृतिक के लिए भी कोई स्थान नहीं है आदान-प्रदान। और यह भारतीय योगदान की बात भी करता है
प्राचीन काल में एक वैश्विक ज्ञान निर्माण प्रक्रिया, सभी संस्कृतियों के साथ एक दूसरे से सीखना, जैसे कि अन्य लोगों ने भारतीय ज्ञान को चुरा लिया है डॉ। हर्षवर्धन ने बीजगणित के संबंध में आरोप लगाया। अल ख्वारिज़्मी ने खुद, जो दुनिया के ध्यान में बीजगणित लाया और जो अक्सर होता है गलती से नवाचार के साथ श्रेय दिया, उदारता से स्वीकार किया भारतीय प्रधानता। इसी तरह, अरबी का लगभग 800 ई। में अनुवाद हुआ सुश्रुत संहिता का नाम किताब-ए-सुसरुद है। संस्कृत ग्रंथों पर भी विशेष ध्यान दिया गया प्राचीन भारत में पाली और प्राकृत में लेखन को अनदेखा करता है, इस प्रकार बाहर रखा गया है जैन और बौद्ध से महामारी विज्ञान और पद्धति संबंधी धाराएँ परंपराओं। प्रतिष्ठित गणित के विद्वान और इतिहासकार (उदाहरण के लिए देखें) एस.जी.डानी {टीआईएफआर, मुंबई में प्रो}, “प्राचीन भारतीय गणित: ए षड्यंत्र, ”पर उपलब्ध है
http://www.ias.ac.in/resonance/Volumes/17/03/0236-0246.pdf और किम प्लोफर, प्रिंसटन द्वारा "भारत में गणित: 500 ईसा पूर्व -1800 सीई" यूनिवर्सिटी प्रेस, 2009; एक अत्यधिक शिक्षाप्रद अर्क उपलब्ध है
http://press.princeton.edu/tmarks/8835.html) ने तर्क दिया है कि ऐसा होगा मतलब महत्वपूर्ण ज्ञान से बाहर निकलने और जैना और बौद्ध छात्रवृत्ति के बाद से गणितीय परंपराएं कई थीं वैदिकों की चिंताओं से काफी अलग थे ब्राह्मण, जैसे कि रुचि की कमी अगर अनुष्ठान के प्रति उदासीनता नहीं है प्रदर्शन जो वैदिक के बहुत से प्रमुख संकेत थे अंक शास्त्र। चाहे जानबूझकर या अज्ञानता से उपजी, यह निश्चित रूप से यूरोसेट्रिज्म की समझदारी और अहंकार को दूर करता है हिंदुत्व को प्यार करने के लिए मजबूर करना पड़ता है। बेशक, हिंदुत्व के प्रस्तावक पूरी तरह से हैं चारों ओर मोड़ने और यह तर्क देने में सक्षम है कि बौद्ध और जैन धर्म हैं बड़े हिंदू परिवार के सभी भाग के बाद, सभी स्वदेशी धर्म हैं लेकिन विभिन्न रूपों में हिंदू धर्म, कटु सिद्धांत विवादों को कभी नहीं मानता है    और कभी-कभी इन अलग-अलग समर्थकों के बीच खूनी प्रतिद्वंद्विता होती है धर्मों।
प्राचीन भारत में विज्ञान अज्ञात नहीं है प्रमुख आयोजकों में से एक विज्ञान कांग्रेस में विशेष संगोष्ठी, के डॉ। गौरी माहुलिकर संस्कृत विभाग, मुंबई विश्वविद्यालय, जिसने सभी को वीटो कर दिया प्रस्तुत पत्रों में कहा गया है कि "अब तक, संस्कृत को अनिवार्य रूप से एक माना जाता है धर्म और दर्शन की भाषा, लेकिन तथ्य यह है कि यह भी बात करता है भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान, भूगोल, ज्यामिति आदि सहित विज्ञान है इन ग्रंथों और ऐतिहासिक में उपलब्ध बहुत सारी वैज्ञानिक जानकारी ऐसे दस्तावेज जिन्हें हम तलाशना चाहते हैं। ”(टाइम्स ऑफ इंडिया, 3 जनवरी 2015)। यह हिंदुत्व कथा का वह किनारा है जिसमें प्राचीन का योगदान है भारत को विज्ञान हिंदुत्व तक पूरी तरह दबा या अज्ञात था समर्थकों ने उन्हें "विचित्र" खोजा। कोलंबस की तरह "खोज"
पहले से ही निवास कर रहे कई स्वदेशी लोगों के साथ अमेरिका! एक सिर्फ हिंदुत्व के कार्यकर्ताओं को माफ कर सकते हैं जिन्होंने शायद सब कुछ सीख लिया यह विषय केवल शक या अपनी स्वयं की लिखी पुस्तकों में से है
आकाओं। लेकिन निश्चित रूप से जो लोग कथित रूप से विद्वानों के काम में लगे हुए हैं, और प्रख्यात नेताओं, मंत्रियों से कम नहीं, कम से कम और अधिक जागरूक होना चाहिए इनकार नहीं, भारत और विदेशों में विद्वानों द्वारा किए गए व्यापक कार्य प्राचीन भारत में विज्ञान। यह काम, विशेषकर 20 वीं सदी के उत्तरार्ध से, से विभिन्न प्रकार के सावधानीपूर्वक मूल्यांकन किए गए साक्ष्यों पर आधारित है संस्कृत और अन्य शास्त्रीय भारतीय ग्रंथों सहित कई स्रोत भाषाएँ, दोनों मूल और अरबी, लैटिन या अन्य में अनुवाद में भाषाओं। द्वारा किए गए संपूर्ण शोध में परिलक्षित शोध परिलक्षित हुआ D.D.Kosambi, D.P.Chattopadhyaya, J.D.Bernal, Joseph Needham
(संयोग से सभी मार्क्सवादी विद्वान) और कई अन्य लोग भी बहुत प्रसिद्ध हैं पुनरावृत्ति की आवश्यकता है। गंभीर विद्वानों से उम्मीद की जाने वाली पहली चीज विलुप्त होने का अध्ययन है इस विषय पर साहित्य, और दूसरों को छोड़ दिया है, जहां शुरू करने के लिए। दावा करना मौलिकता जहाँ कोई भी मौजूद नहीं है वह सबसे खराब किस्म का शैक्षणिक है और बौद्धिक बेईमानी। क्या यही सोच या विद्वता है हिंदुत्व के नेताओं को प्रोत्साहित करना चाहते हैं? या एक उदाहरण के लिए वे सेट करना चाहते हैं देश, विशेष रूप से युवा? यदि हिंदुत्व लक्ष्य केवल उपलब्धियों को उजागर करना था प्राचीन भारत, ज्ञान की वास्तविक, अग्रणी ज्ञान की कमी नहीं है, जैसे सूर्य के सापेक्ष ग्रहों की कक्षीय गति, द पृथ्वी के अक्ष का झुकाव, स्थान मूल्य प्रणाली, का प्रारंभिक अनुमान का मान, दशमलव प्रणाली जिसमें शून्य, बीजगणित और त्रिकोणमिति के विभिन्न पहलुओं और कलन के प्रारंभिक रूपों, में प्रगति चिकित्सा, धातु विज्ञान और इतने पर। जब ये सभी मौजूद हैं और गर्व से हो सकते हैं घोषित, मुझे बचकाना-पहला खेल जो एक बिंदु से परे है आगे इतिहास या विज्ञान की समझ नहीं है, क्या है हिंदुत्व के मतदाताओं के लिए खोज और काल्पनिक या काल्पनिक चीजों का दावा करना दावों? इस तरह के शानदार दावे केवल वास्तविक उपलब्धियों का अवमूल्यन करते हैं   पूर्व से उत्तरार्द्ध तक संदेह को दर्शाता है। दूर से जोड़ने के लिए भारतीय सभ्यता की महिमा, हिंदुत्व के पैरोकार शर्मिंदा कर रहे हैं राष्ट्र और विज्ञान में अपने महान योगदान के लिए एक बहुत बड़ा असंतोष कर रहा है प्राचीन काल और भारतीय वैज्ञानिकों ने आज जो काम किया है।
निष्कर्ष में कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं को छुआ जा सकता है।
102 वें भारतीय में संगोष्ठी के आयोजन का बहुत कार्य विज्ञान कांग्रेस भारत में विज्ञान के लिए बुरे दिनों को आगे बढ़ाती है। यह दिखाता है कि, आगे-आगे विकास उन्मुख दृष्टिकोण के विपरीत है कि वे घोषणा करते हैं, हिंदुत्ववादी ताकतों को इससे कोई नुकसान नहीं है ज्ञान निर्माण और उनकी खोज में प्रमुख वैज्ञानिक संस्थानों के लिए वास्तविक वैचारिक एजेंडा। सही मायने में चिंता कांग्रेस की चुप्पी भी है आयोजकों, वैज्ञानिकों की मौजूदगी और प्रमुख वैज्ञानिक निकायों पर विज्ञान कांग्रेस का यह दुरुपयोग और सरकारी दुरुपयोग इस प्रतिगामी एजेंडे को लागू करने की शक्ति। भारत में लोग, विशेषकर ग्रामीण और वन क्षेत्रों में गरीब, पिछले कुछ दशकों में बन गए हैं विभिन्न विकासात्मक कार्यक्रमों या परियोजनाओं के प्रति नाराजगी उनके जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव, जैसे बड़े बांध, परमाणु ऊर्जा संयंत्र, जीएम फसलों और खाद्य पदार्थ, कीटनाशक और अन्य खतरनाक रसायन। लोग
उन्हें इस बात का भी गहरा संदेह है कि वे “सरकरी” के रूप में क्या मानते हैं (आधिकारिक) वैज्ञानिक ”जो इस तरह के बचाव के लिए सरकार द्वारा मैदान में हैं परियोजनाओं और दावा है कि वे कोई खतरा नहीं है, यहां तक ​​कि जब सबूत और अन्य विशेषज्ञों की राय दृढ़ता से विपरीत संकेत देती है। यह करने के लिए अग्रणी है विज्ञान का बढ़ता अविश्वास। विज्ञान में संगोष्ठी कांग्रेस, मंत्रियों और अन्य द्वारा अवैज्ञानिक टिप्पणियों की दीवानी हिंदुत्व नेताओं, और स्थापना वैज्ञानिकों की मूक प्रतिक्रिया इन विकासों की ओर केवल बढ़ती हुई धारणा को जोड़ा जाता है वैज्ञानिकों के पास निष्पक्ष प्रमाण-आधारित निष्कर्षों के प्रति कम निष्ठा है और उनकी इच्छा के अनुसार उनकी राय को पूँछने का काम करें राजनीतिक स्वामी और उन्हें को-टो करना। प्राचीन भारत में विज्ञान के विषय में महत्वपूर्ण बिंदु यह नहीं है कि क्या हिंदुत्व के प्रस्तावक इस या उस दावे के बारे में सही हैं या नहीं। ऐसा
प्रश्नों का अध्ययन करना और उत्तर देना मुश्किल नहीं है, बशर्ते कि कोई अनुसरण न करे अनुसंधान के संचालन के लिए प्रसिद्ध वैज्ञानिक प्रक्रियाएं, परीक्षण परिकल्पना या एक अस्थायी, और निष्कर्ष पर पहुंचने। विज्ञान और
इतिहास गंभीर विषय हैं, इसके द्वारा कठोरता, खुलेपन, जांच की मांग की जाती है साथियों, और अंत में परिकल्पना की स्वीकृति, अस्वीकृति या संशोधन। पौराणिक कथाएं इतिहास के समान नहीं हैं, और कभी भी समान नहीं हो सकती हैं विज्ञान के रूप में ontological स्थिति। वास्तव में, किसी को उनसे उम्मीद नहीं करनी चाहिए। मानवविज्ञानी लंबे समय से तर्क देते रहे हैं कि पौराणिक कथाओं का एक अलग सामाजिक संबंध है
कार्य, और उनके महत्व का आकलन उनके ऐतिहासिक द्वारा नहीं किया जाना है "सत्य" मान। अंत में, लड़ाई केवल विज्ञान बनाम पौराणिक कथा नहीं है, ऐतिहासिक तथ्य के खिलाफ झूठे दावे, लेकिन शैक्षणिक और के लिए एक लड़ाई बौद्धिक कठोरता, विज्ञान की विधि और इतिहासलेखन के लिए, और अंततः वैज्ञानिक दृष्टिकोण और आलोचनात्मक पूछताछ के लिए, जैसा कि अंधों के खिलाफ है    प्राधिकारी की स्वीकृति जो भी हो या जो भी हो बढ़ा-चढ़ा कर बता सकता है। उस हालांकि, सत्तावादी सड़क है, जो भविष्य में बहुत धूमिल होती है
हमारा अतीत गौरवशाली।